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रविवार, 3 अप्रैल 2011

विक्रमी संवत २०68 का शुभ आरम्भ

भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है. येही संस्कृति समाज में हर्ष उल्लास जागाते हुए हमें एक सही दिशा प्रदान करती है, जिसे हम समय समय पर उत्सव के रूप में मना मना कर अपनी संस्कृति के प्रणेताओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं. अपने स्वाभिमान और रास्त्र प्रेम को जागाने वाला एसा ही प्रसंग आता है चेत्रा मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को जिस दिन से हमारा हिन्दू नव वर्ष प्रारम्भ होता है.

आइये इस दिन की महानता से सम्बंधित प्रसंगों को देखते हैं :-

१. यह दिन काल गरना का प्रथम दिन है, अर्थात इस दिन सूर्योदय के साथ ही ब्रहमा जी ने स्रष्टी की रचना प्रारंभ की थी.
२. बिक्रमी सम्बत का प्रथम दिन - कहा जाता है की उसी राजा के नाम पर सम्बत प्रारम्भ करने का प्रावधान है, जिस के राज्य में कोई दींन दुखी न हो, कोई चोर या अपराधी न हो, किसी भी नागरिक को किसी दुसरे से या राजा से कोई शिकायत ना हो तथा जो चक्रवर्ती राजा हो. इसे ही राजा विक्रमादित्या का राज्याभिषेक इसी दिन २०६७ बर्ष पूर्व हुआ था
३. मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अपने राज्याभिषेक के लिए चुना था.
४. नवरात्रि स्थापना : शक्ति और भक्ति के ९ दिन अर्थात नवरात्री स्थापना का पहला दिन भी यही है. यही दिन प्रभु राम के जनम दिवस के नौदिव्सीय उत्सव का प्रथम दिन भी है.
५. सिख संप्रदाय के द्वतीय गुरु श्री अंगद देव का प्रकाटोत्साब (जन्म दिवस) भी इसी शुभ दिन होता है.
६. मानव सामाज को श्रेष्ठतम मार्ग पर ले जाने के लिए आर्या समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्या समाज की स्थापना की थी.
७. सिंध प्रान्त के प्रसिद्द समाज रक्षक वरुनावातार संत श्रोमणी झुलेलाल ने भी इसी पवित्र दिन भूलोक पर प्रकट हो कर हमें कृतार्थ किया था.
८. राजा विक्रमादित्या की भांति शालीनवाहन ने हूणों को परस्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित कर आज के ही दिन से शालीनवाहन संवत्सर का शुभारम्भ किया था
९. ५११२ वर्ष पूर्व युदिश्थिर राज्याभिषेक के साथ ही आज के दिन से ही युगाब्द संवत्सर का शुभारम्भ हुआ था

प्रकर्ति भी इस अवसार पर आनंदित हो आशीर्वाद स्वरुप हमारा साथ देने को वातावरण वसंत यानी उल्लास, उमंग और पुष्पों की सुगंध से भर देती है. यही वो समय है जब इश्वर किसानो को उन की महेनत का प्रतिफल दे कर उपकृत करता है.

क्या १ जनवरी के साथ एसा एक भी प्रेरणा दायक प्रसंग जुरा है, जो हमारे मन में स्वाभिमान देशप्रेम या श्रेष्ठता का भाव पैदा करने में सक्षम हो?

आज देश करबत बदल रहा है. सदिओं की निद्रा को दूर कर हिन्दू समाज भी अंगराई ले रहा. हिन्दू की परिभाषा में वे सभी लोग आते हैं जो भारत माता को अपनी माता, देश में महापुरषों को अपना पूर्वज तथा देश की संस्कृति के मूल तत्वके आगे नत मस्तक हैं.

सत्य एक है, पर उसे लोग भिन्न भिन्न नामो से जानते हैं. जिस प्रकार उस के नाम भिन्न भिन्न हैं उसी प्रकार परम सत्य तक पहुचने के मार्ग भी अलग अलग हैं. वे सभी मार्ग सत्य हैं आवश्कता केवल उन में से किसी एक मार्ग को चुन कर उस पर पुरी सत्य निष्ठा के साथ चलने की है. आज आवश्कता इस बात की है की हम सब साथ चले, अपने अपने रास्ते पर चले, अपनी संस्कृति का पालन करे, एक दूससरे का स्सह्योग करें अपने हिन्दू होने का गर्व करे तभी हम दुनिया में अपनी पताका सब से ऊँची फहरा सकें गे.

आओ हम सब मिल कर अपने हिन्दू होने पर गर्व करे


नव बर्ष शुभ हो





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